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बर्बरीक जी का शीश
महाभारत का समय
हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी मंदिर का इतिहास द्वापरयुग से जुड़ा है, जब बर्बरीक ने श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। बर्बरीक जी का शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कथा के अनुसार एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
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मंदिर निर्माण का इतिहास:
1027 ई.
मूल कथा:
बर्बरीक, महाभारत के समय घटोत्कच और नागकन्या अहिलावती के पुत्र थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को वचन दिया था कि वे धर्म की रक्षा करेंगे। उनके बलिदान के बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे कलियुग में श्याम नाम से पूजे जाएंगे।
प्रथम मंदिर निर्माण:
खाटू श्यामजी की प्रतिमा को 11वीं शताब्दी में जमीन के अंदर दबा दिया गया था। 18वीं शताब्दी में इसे जमीन से निकाला गया। मान्यता है कि प्रतिमा को एक स्थानीय ग्रामीण को सपने में देखने के बाद पुनः प्राप्त किया गया। तत्पश्चात, राजा राव रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी निर्मला कंवर ने खाटू श्यामजी का मंदिर बनवाया।
वर्तमान स्वरूप:
मंदिर का वर्तमान स्वरूप 19वीं शताब्दी में तैयार हुआ, और इसे सफेद संगमरमर और वास्तुकला की सुंदर शैली में बनाया गया।
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