खाटू श्याम जी की कथा भारतीय धार्मिक परंपरा में अद्वितीय है। खाटू श्याम जी, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण का कलियुग अवतार माना जाता है, उनकी कहानी त्याग, भक्ति और करुणा का प्रतीक है। आइए जानते हैं उनकी पूरी कहानी।
खाटू श्याम जी का असली नाम बार्बरीक था। वे महाभारत के महान योद्धा भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे। बार्बरीक बचपन से ही पराक्रमी और असीम शक्ति के धनी थे। भगवान शिव ने उन्हें तीन अजेय बाणों का वरदान दिया था, जिससे वे किसी भी युद्ध को मात्र तीन बाणों में समाप्त कर सकते थे।
महाभारत के युद्ध के समय, बार्बरीक ने युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। लेकिन उनकी शर्त यह थी कि वे केवल कमजोर पक्ष का साथ देंगे। उनकी इस शर्त ने भगवान श्रीकृष्ण को चिंता में डाल दिया, क्योंकि बार्बरीक की ताकत से युद्ध का संतुलन बिगड़ सकता था।
श्रीकृष्ण ने बार्बरीक की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने एक साधु के रूप में बार्बरीक से पूछा कि वे युद्ध में किस पक्ष का समर्थन करेंगे। बार्बरीक ने कहा कि वे हमेशा कमजोर पक्ष का साथ देंगे। श्रीकृष्ण ने महसूस किया कि बार्बरीक के इस निर्णय से युद्ध का परिणाम बदल सकता है।
श्रीकृष्ण ने बार्बरीक से उनका शीश दान करने का अनुरोध किया, ताकि युद्ध का संतुलन बना रहे। बार्बरीक ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना शीश दान कर दिया। उनके इस बलिदान ने उन्हें अमर कर दिया। श्रीकृष्ण ने उनके शीश को वरदान दिया कि कलियुग में उनकी पूजा खाटू नगरी में होगी और वे "हारे का सहारा" कहलाएंगे।
बार्बरीक का शीश खाटू नगरी में स्थापित किया गया, जो आज खाटू श्याम जी के मंदिर के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
खाटू श्याम जी को "हारे का सहारा" कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। उनकी कृपा से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
खाटू श्याम जी की कथा त्याग, भक्ति और करुणा का प्रतीक है। उनकी पूजा से भक्तों को न केवल भौतिक सुख बल्कि आध्यात्मिक शांति भी मिलती है। अगर आपने अभी तक खाटू श्याम जी के दर्शन नहीं किए हैं, तो एक बार जरूर जाएं और उनकी कृपा प्राप्त करें।
जय श्री श्याम!